बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
अपनी ताक़त के बलबूते हाथी ज़िन्दा है
मिल-जुलकर रहती है सो चींटी भी ज़िन्दा है
कैसे मानूँ रूठ गया है मेरा रब मुझसे
मैं ज़िन्दा हूँ, पैमाना है, साकी ज़िन्दा है
सारे साँचे देख रहे हैं मुझको अचरज से
कैसे अब तक मेरे भीतर बागी ज़िन्दा है
लड़ते हैं मौसम से, सिस्टम से मरते दम तक
इसीलिए ज़िन्दा हैं खेत, किसानी ज़िन्दा है
सबकुछ बेच रही, मानव से लेकर ईश्वर तक
ऐसे थोड़े ही दुनिया में पूँजी ज़िन्दा है
आग बहुत है तुझमें ये माना ‘सज्जन’ लेकिन
ढूँढ़ जरा ख़ुद में क्या तुझमें पानी ज़िन्दा है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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भाई बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंहर शेर खूबसूरत है।
बधाई
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ, आदरणीय द्विज जी
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