बह्र : २२ २२ २२ २२
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श्रोडिंगर ने सच बात कही
हम जिन्दा भी हैं मुर्दा भी
इक दिन मिट जाएगी धरती
क्या अमर यहाँ? क्या कालजयी?
उस मछली ने दुनिया रच दी
जो ख़ुद जल से बाहर निकली
कुछ शब्द पवित्र हुए ज्यों ही
अपवित्र हो गए शब्द कई
जिस दिन रोबोट हुए चेतन
बन जाएँगें हम ईश्वर भी
मस्तिष्क मिला बहुतों को पर
उनमें कुछ को ही रीढ़ मिली
मैं रब होता, दुनिया रचता
इस से अच्छी, इस से जल्दी
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
वाह ... अंतिम शेर तो कमाल का है ... अच्छा प्रयोग है ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नास्वा जी
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