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रविवार, 16 अगस्त 2015

कविता : बाज़ और कबूतर

संभव नहीं है ऐसी दुनिया
जिसमें ढेर सारे बाज़ हों और चंद कबूतर

बाज़ों को जिन्दा रहने के लिए
ज़रूरत पड़ती है ढेर सारे कबूतरों की

बाज ख़ुद बचे रहें
इसलिए वो कबूतरों को जिन्दा रखते हैं
उतने ही कबूतरों को
जितनों का विद्रोह कुचलने की क्षमता उनके पास हो

कभी कोई बाज़ किसी कबूतर को दाना पानी देता मिले
तो ये मत समझिएगा कि उस बाज़ का हृदय परिवर्तन हो गया है

क्षेपक:

यहाँ यह बता देना भी जरूरी है
कि कबूतरों को जिन्दा रहने के लिए बाज़ों की कोई ज़रूरत नहीं होती

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