मंगलवार, 25 अगस्त 2015

ग़ज़ल : उनकी आँखों में झील सा कुछ है

बह्र : २१२२ १२१२ २२

उनकी आँखों में झील सा कुछ है
बाकी आँखों में चील सा कुछ है

सुन्न पड़ता है अंग अंग मेरा
उनके होंठों में ईल सा कुछ है

फैसले ख़ुद-ब-ख़ुद बदलते हैं
उनका चेहरा अपील सा कुछ है

हार जाते हैं लोग दिल अकसर
हुस्न उनका दलील सा कुछ है

ज्यूँ अँधेरा हुआ, हुईं रोशन
उनकी यादों में रील सा कुछ है

रविवार, 23 अगस्त 2015

ग़ज़ल : हम जिन्दा भी हैं मुर्दा भी

बह्र : २२ २२ २२ २२
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श्रोडिंगर ने सच बात कही
हम जिन्दा भी हैं मुर्दा भी

इक दिन मिट जाएगी धरती
क्या अमर यहाँ? क्या कालजयी?

उस मछली ने दुनिया रच दी
जो ख़ुद जल से बाहर निकली

कुछ शब्द पवित्र हुए ज्यों ही
अपवित्र हो गए शब्द कई

जिस दिन रोबोट हुए चेतन
बन जाएँगें हम ईश्वर भी

मस्तिष्क मिला बहुतों को पर
उनमें कुछ को ही रीढ़ मिली

मैं रब होता, दुनिया रचता
इस से अच्छी, इस से जल्दी

रविवार, 16 अगस्त 2015

कविता : बाज़ और कबूतर

संभव नहीं है ऐसी दुनिया
जिसमें ढेर सारे बाज़ हों और चंद कबूतर

बाज़ों को जिन्दा रहने के लिए
ज़रूरत पड़ती है ढेर सारे कबूतरों की

बाज ख़ुद बचे रहें
इसलिए वो कबूतरों को जिन्दा रखते हैं
उतने ही कबूतरों को
जितनों का विद्रोह कुचलने की क्षमता उनके पास हो

कभी कोई बाज़ किसी कबूतर को दाना पानी देता मिले
तो ये मत समझिएगा कि उस बाज़ का हृदय परिवर्तन हो गया है

क्षेपक:

यहाँ यह बता देना भी जरूरी है
कि कबूतरों को जिन्दा रहने के लिए बाज़ों की कोई ज़रूरत नहीं होती

शनिवार, 8 अगस्त 2015

ग़ज़ल : दुश्मनी हो जाएगी यदि सच कहूँगा मैं

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २

दुश्मनी हो जाएगी यदि सच कहूँगा मैं
झूठ बोलूँगा नहीं सो चुप रहूँगा मैं

आप चाहें या न चाहें आप के दिल में
जब तलक मरज़ी मेरी तब तक रहूँगा मैं

बात वो करते बहुत कहते नहीं कुछ भी
इस तरह की बेरुख़ी कब तक सहूँगा मैं

तेज़ बहती धार के विपरीत तैरूँगा
प्यार से बहने लगी तो सँग बहूँगा मैं

सिर्फ़ सुनते जाइये तारीफ़ मत कीजै
कीजिएगा इस जहाँ में जब न हूँगा मैं

शनिवार, 1 अगस्त 2015

लघुकथा : देशद्रोह

खुद को देशभक्त समझने वाले राम ने रहीम से कहा, “तुमने देशद्रोह किया है।”

रहीम ने पूछा, “देशद्रोह का मतलब?”

राम ने शब्दकोश खोला, देशद्रोह का अर्थ देखा और बोला, “देश या देशवासियों को क्षति पहुँचाने वाला कोई भी कार्य।”

बोलने के साथ ही राम के चेहरे का आक्रोश गायब हो गया और उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे किसी ने उसे बहुत बड़ा धोखा दिया हो। न चाहते हुए भी उसके मुँह से निकल गया, “हे भगवान! इसके अनुसार तो हम सब....।”

रहीम के होंठों पर मुस्कान तैर गई।