बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर
सीख लिया हमने भी चलना पानी पर
राह यही जाती रूहानी मंजिल तक
दुनिया क्यूँ रुक जाती है जिस्मानी पर
नहीं रुकेगा निर्मोही, मालूम उसे
फिर भी दीपक रखती बहते पानी पर
दुनिया तो शैतान इन्हें भी कहती है
सोच रहा हूँ बच्चों की शैतानी पर
जब देखो तब अपनी उम्र लगा देती
गुस्सा आता है माँ की मनमानी पर
वाई फाई प्रयोग से होने वाले शारीरिक दुष्प्रभावो के सम्बन्ध में विशेष अपील
जवाब देंहटाएंराह यही जाती रूहानी मंजिल तक
दुनिया क्यूँ रुक जाती है जिस्मानी पर
नहीं रुकेगा निर्मोही, मालूम उसे
फिर भी दीपक रखती बहते पानी पर
बहुत उम्दा रचना !
शुक्रिया
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