देखो कैसे
एक धुरी पर
नाच रहा पंखा
दिनोरात
चलता रहता है
नींद चैन त्यागे
फिर भी अब तक
नहीं बढ़ सका
एक इंच आगे
फेंक रहा है
फर फर फर फर
छत की गर्म हवा
इस भीषण
गर्मी में करता
है केवल बातें
दिन तो छोड़ो
मुश्किल से अब
कटती हैं रातें
घर से बाहर
लू चलती है
जाएँ कहाँ भला
लगा घूमने का
बचपन से ही
इसको चस्का
कोई आकर
चुपके से दे
बटन दबा इसका
व्यर्थ हो रही
बिजली की ये
है अंतिम इच्छा
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
डायनामिक आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंअवश्य
हटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंरचनात्मक सरल ग्राहय कविता
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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