एक अधिकारी ने कहा, “जल्दी ही कुछ किया न गया तो बाहर नारा लगाने वाले लोग कुछ भी कर सकते हैं”।
अंत में सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया कि तंत्र को पूर्णतया पारदर्शी बना दिया जाय।
कुछ ही दिनों में दफ़्तर की सारी दीवारें ऐसे शीशे की बनवा दी गईं जिससे बाहर की रोशनी अंदर न आ सके लेकिन अंदर की रोशनी बाहर जा सके। अब दफ़्तर का सारा काम काज बाहर से देखा जा सकता था। जनता बहुत खुश थी कि अब दफ़्तर के किसी कर्मचारी की हिम्मत नहीं होगी रिश्वत लेने की।
दफ़्तर के कर्मचारी बहुत खुश थे। अब तो जाँच का भी कोई खतरा नहीं था क्योंकि दफ़्तर का सारा कामकाज बाहर बैठे जाँच अधिकारियों की आँखों के सामने ही हो रहा था। पारदर्शी दफ़्तर का शौचालय पारदर्शी नहीं था और उसे दुनिया का कोई संविधान कोई कानून कभी पारदर्शी नहीं बनवा सकता था।
अंत में सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया कि तंत्र को पूर्णतया पारदर्शी बना दिया जाय।
कुछ ही दिनों में दफ़्तर की सारी दीवारें ऐसे शीशे की बनवा दी गईं जिससे बाहर की रोशनी अंदर न आ सके लेकिन अंदर की रोशनी बाहर जा सके। अब दफ़्तर का सारा काम काज बाहर से देखा जा सकता था। जनता बहुत खुश थी कि अब दफ़्तर के किसी कर्मचारी की हिम्मत नहीं होगी रिश्वत लेने की।
दफ़्तर के कर्मचारी बहुत खुश थे। अब तो जाँच का भी कोई खतरा नहीं था क्योंकि दफ़्तर का सारा कामकाज बाहर बैठे जाँच अधिकारियों की आँखों के सामने ही हो रहा था। पारदर्शी दफ़्तर का शौचालय पारदर्शी नहीं था और उसे दुनिया का कोई संविधान कोई कानून कभी पारदर्शी नहीं बनवा सकता था।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (31.07.2015) को "समय का महत्व"(चर्चा अंक-2053) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंबहुत ही सुन्दर भाव है कहानी में।
जवाब देंहटाएंस्वयं शून्य
शुक्रिया राजीव जी
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