सरकारी खर्चे पर होटल के कमरे में बैठे बैठे साहब ने एक तंदूरी मुर्गा खत्म किया। फिर पानी पीकर डकार मारते हुए किसी बड़े लेखक का अत्यन्त मार्मिक उपन्यास पढ़ने लगे। उपन्यास में गरीबों की दशा का जिस तरह वर्णन किया गया था वह पढ़ते पढ़ते साहब का पहले से भरा पेट और फूलने लगा। अन्त में जब साहब से पेट दर्द सहन नहीं हुआ तो वो उठकर अपनी मेज पर गए। दराज से अपनी डायरी निकाली और एक सादा पन्ना खोलकर शब्दों की उल्टी करने लगे।
पेट खाली हो जाने के बाद उन्हें असीम आनन्द की अनुभूति हुई। उन्होंने एसी का तापमान अठारह डिग्री किया और कम्बल तान कर लेट गए। लेटे लेटे वो सोचने लगे कि क्या शानदार लघुकथा हुई है। इसे पढ़कर प्रदेश की वामपंथी सरकार मुझे अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण पद दे देगी। सोचते सोचते उन्हें नींद आ गई और वो सो गए।
कमरे की हवा से जब शब्दों की दुर्गन्ध सही नहीं गई तो उसने अपना सारा दम लगाकर डायरी का पन्ना पलट दिया।
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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