बह्र : १२१२ ११२२ १२१२ २२
हर एक शक्ल पे देखो नकाब कितने हैं
सवाल एक है लेकिन जवाब कितने हैं
जले गर आग तो उसको सही दिशा भी मिले
गदर कई हैं मगर इंकिलाब कितने हैं
जो मेर्री रात को रोशन करे वही मेरा
जमीं पे यूँ तो रुचे माहताब कितने हैं
कुछ एक जुल्फ़ के पीछे कुछ एक आँखों के
तुम्हारे हुस्न से खाना ख़राब कितने हैं
किसी के प्यार की कीमत किसी की यारी की
न जाने आज भी बाकी हिसाब कितने हैं
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
हर एक शक्ल पे देखो नकाब कितने हैं
जवाब देंहटाएंसवाल एक है लेकिन जवाब कितने हैं
जले गर आग तो उसको सही दिशा भी मिले
गदर कई हैं मगर इंकिलाब कितने हैं
सुन्दर रचना !
शुक्रिया मनोज जी
हटाएंनयी रुचिकर कविता
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंनयी रुचिकर कविता
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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