बूँद बूँद बरसो
मत धार धार बरसो
करते हो
यूँ तो तुम
बारिश कितनी सारी
सागर से
मिल जुलकर
हो जाती सब खारी
जितना सोखे धरती
उतना ही बरसो पर
कभी कभी मत बरसो
बार बार बरसो
गागर है
जीवन की
बूँद बूँद से भरती
बरसें गर
धाराएँ
टूट फूट कर बहती
जब तक मन करता हो
तब तक बरसो लेकिन
ढेर ढेर मत बरसो
सार सार बरसो
kya bat....hamesha ki tarah...badhiya
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनामिका जी
हटाएंवाह क्या स्वाभाविक गुजारिश ऊपरवाले से
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंवाह क्या स्वाभाविक गुजारिश ऊपरवाले से
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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