सोमवार, 22 जून 2015

ग़ज़ल : ये प्रेम का दरिया है इसमें सारे ही कमल मँझधार हुए

बह्र : 22 22 22 22 22 22 22 22

ये प्रेम का दरिया है इसमें सारे ही कमल मँझधार हुए
याँ तैरने वाले डूब गये और डूबने वाले पार हुए

फ़न की खातिर लाखों पापड़ बेले तब हम फ़नकार हुए
पर बिकने की इच्छा करते ही पल भर में बाज़ार हुए

इंसान अमीबा का वंशज है वैज्ञानिक सच कहते हैं
दिल जितने टुकड़ों में टूटा हम उतने ही दिलदार हुये

मजबूत संगठन के दम पर हर बार धर्म की जीत हुई
मानवता के सारे प्रयास, थे जुदा जुदा, बेकार हुये

जिन चट्टानों को अपनी सख़्ती पर था ज़्यादा नाज़ यहाँ
उन चट्टानों के वंशज ही सबसे ज़्यादा सुकुमार हुये

सौ बार गले सौ बार ढले सौ बार लगे हम यंत्रों में
पर जाने क्या अशुद्धि हम में थी, बागी हम हर बार हुये

जब तक सबका कहना माना सबने कहना ही मनवाया
जब से सबको इनकार किया तबसे हम ख़ुदमुख़्तार हुये

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही कहा आपने !
    manojbijnori12.blogspot.com

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  2. जब तक सबका कहना माना सबने कहना ही मनवाया
    जब से सबको इनकार किया तबसे हम ख़ुदमुख़्तार हुये
    उम्दा पंक्तियाँ |

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