बह्र : 221 2121 1221 212
रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है
पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है
ख़ुद का भी घर जला है तो अब चीखने लगे
ये आग आप ही की लगाई हुई तो है
बारिश के इंतजार में सदियाँ गुज़र गईं
महलों की नींव तक ये खुदाई हुई तो है
खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए
छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है
क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा
ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो है
वर्षों से इस ज़मीन में कुछ भी नहीं उगा
इसकी लहू से ख़ूब सिंचाई हुई तो है
ख़ुद का भी घर जला है तो अब चीखने लगे
जवाब देंहटाएंये आग आप ही की लगाई हुई तो है ..
बहुत ही लाजवाब और इशारों में कही बात ... पूरी ग़ज़ल कमाल है सज्जन जी ... बधाई ...
शुक्रिया नास्वा जी
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