बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२
फिर मिल जाये तुम्हें वही रस्ता रुक जाना
ख़ुद को दुहराने से है अच्छा रुक जाना
उनके दो ही काम दिलों पर भारी पड़ते
एक तो उनका चलना औ’ दूजा रुक जाना
दिल बंजर हो जाएगा आँसू मत रोको
ख़तरनाक है खारे पानी का रुक जाना
तोड़ रहे तो सारे मंदिर मस्जिद तोड़ो
नफ़रत फैलाएगा एक ढाँचा रुक जाना
पंडित, मुल्ला पहुँच गये हैं लोकसभा में
अब तो मुश्किल है ‘सज्जन’ दंगा रुक जाना
तोड़ रहे तो सारे मंदिर मस्जिद तोड़ो
जवाब देंहटाएंनफ़रत फैलाएगा एक ढाँचा रुक जाना
बहुत खूब ... बहुत ही अर्थपूर्ण शेर हैं इस ग़ज़ल के धर्मेन्द्र जी ... मज़ा आ गया ...
बहुत बहुत शुक्रिया नास्वा जी
हटाएंपंडित, मुल्ला पहुँच गये हैं लोकसभा में
जवाब देंहटाएंअब तो मुश्किल है ‘सज्जन’ दंगा रुक जाना
गजल के माध्यम से सही व्यंग्य किया आपने !
शुक्रिया मनोज जी
हटाएं