पैसा, ख़तरा, ख़ून हमारा
सारा लाभ तुम्हारा
तिल तिल कर वो मरा सदा
जो रहा अछूता तुमसे
चारों खम्भे लोकतंत्र के
चरण वन्दना करते
सारी ख़बरों में बजता है
तुम्हरा ही इकतारा
नायक खलनायक अधिनायक
खेल खिलाड़ी सारे
देव, दैव, इंसान, दरिन्दे
सब हैं दास तुम्हारे
मन्दिर मस्जिद गिरिजाघर में
गूँज रहा जयकारा
ऐसा क्या है इस दुनिया में
जिसे न तुमने जीता
साम, दाम, औ’ दंड, भेद से
फल पाया मनचीता
पूँजी तुम्हरे रामबाण से
सारा भारत हारा
पैसा, ख़तरा, ख़ून हमारा
जवाब देंहटाएंसारा लाभ तुम्हारा
...वाह ..बहुत सटीक अभिव्यक्ति..
शुक्रिया कैलाश जी
हटाएंवाह .. मस्त नवगीत है ... सार्थक टिप्पणी है आज के माहोल पर ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दिगंबर जी
हटाएंसटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रतिभा जी
हटाएंपैसा, ख़तरा, ख़ून हमारा
जवाब देंहटाएंसारा लाभ तुम्हारा
सुन्दर सही भावाभिव्यक्ति ,वास्तविकता को बयां कर दिया है आपने ,आज यही सब कुछ हो रहा है
शुक्रिया महेन्द्र जी
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंsunder rachana
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