बह्र : २२ २२ २२ २२
क्या जोड़े तू, कैसे बाँटे
एक फूल को सौ सौ काँटे
अरबों भक्तों की दुनिया में
कुछ पूँजीपति कैसे छाँटे
आशिक तेरे दोनों हैं पर
इसको चुम्बन उसको चाँटे
धरती भी तो आखिर माँ है
सबको चूमे सबको डाँटे
ले तेरा तुझको अर्पित है
दुख, लाचारी, काँटे, चाँटे
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंSundar Rachna
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मनोज जी
हटाएंवाह मस्त हैं सभी शेर ... अच्छी ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दिगंबर जी
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