बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२
हाँ मैं भी गलती करता हूँ मैंने कब इनकार किया है
मैं भी आदम का बच्चा हूँ मैंने कब इनकार किया है
जब गुस्से में हूँ, तीख़ा हूँ, मैंने कब इनकार किया है
जब आँसू हूँ, तो खारा हूँ मैंने कब इनकार किया है
अनुभव के आगे बच्चा हूँ मैंने कब इनकार किया है
बचपन के आगे बूढ़ा हूँ मैंने कब इनकार किया है
मजलूमों का खून चलाता है जिन यंत्रों को उनका ही
मैं भी छोटा सा पुर्जा हूँ मैंने कब इनकार किया है
दफ़्तर से घर, घर से दफ़्तर, ऐसे सभ्य हुआ हूँ मैं भी
लेकिन मन का बंजारा हूँ मैंने कब इनकार किया है
मज़लूमों की ख़ातिर मन में दर्द बहुत है फिर भी ‘सज्जन’
तन की सुविधा का चमचा हूँ मैंने कब इनकार किया है
खरी-खरी टटकी कहते हैं, मैंने कब इंकार किया है।
जवाब देंहटाएंआप ग़ज़ल अच्छी कहते हैं,मैंने कब इंकार किया है।
शुक्रिया कृष्ण नन्दन जी
हटाएंवाह ... बहुत ही लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के सज्जन जी ...
जवाब देंहटाएंमज़ा आया बहुत ही ...
बहुत बहुत शुक्रिया नास्वा जी
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