सूखी यादें जब झड़ती हैं
जाकर आँखों में गड़ती हैं
अच्छा है थोड़ा खट्टापन
खट्टी चीजें कम सड़ती हैं
फ्रिज में जिनको हम रख देते
बातें वो और बिगड़ती हैं
हैं जाल सरीखी सब यादें
तड़पो तो और जकड़ती हैं
जब प्यार जताना हो ‘सज्जन’
नज़रें आपस में लड़ती हैं
अच्छा है थोड़ा खट्टापन
जवाब देंहटाएंखट्टी चीजें कम सड़ती हैं ..
बहुत ही लाजवाब ... कमाल का शेर है इस बेहतरीन ग़ज़ल का सज्जन जी ... दिली दाद कबूल करें ...
बहुत बहुत शुक्रिया नास्वा जी
हटाएं.
जवाब देंहटाएंवाह भाईजी
अच्छी ग़ज़ल कही !
नमन !
शुक्रिया राजेन्द्र जी
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
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