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गुरुवार, 13 नवंबर 2014

ग़ज़ल : मैं खड़ा हूँ शक्ति, पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
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राजमहलों को बचाती इस व्यवस्था के ख़िलाफ़
मैं खड़ा हूँ शक्ति, पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़

राम, ईसा, बुद्ध, पैगम्बर हों या अंबेडकर
मैं सदा लड़ता रहूँगा व्यक्ति-पूजा के ख़िलाफ़

काट लो इसका अँगूठा माँ तलक कहने लगीं
सीखने जब लग पड़ा गुरुओं की इच्छा के ख़िलाफ़

आदमी के साथ गर हैं आप तो फिर आज से
साथ उनका दीजिए लिखते जो राजा के ख़िलाफ़

पाँव छूते ही सभी दुष्कर्म करते माफ़, यूँ,
वृद्ध चाचा चौधरी लड़ते हैं राका के ख़िलाफ़

2 टिप्‍पणियां:

  1. राम, ईसा, बुद्ध, पैगम्बर हों या अंबेडकर
    मैं सदा लड़ता रहूँगा व्यक्ति-पूजा के ख़िलाफ़ ..
    बहुत खूब ... धर्मेन्द्र जी हर शेर कितना कुछ कह रहा है ... और आखरी शेर सच कहूं तो मील का पत्थर है ... सुभान अल्ला ...

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