बह्र : 22
22 22 22 22 2
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चुप रहकर सब सहता जाता है साबुन
इसीलिये गोरी को भाता है साबुन
आशिक, शौहर दोनों खूब तरसते हैं
हर दिन गोरी को नहलाता है साबुन
बनी रहे सुन्दरता इसीलिए खुद को
थोड़ा थोड़ा रोज मिटाता है साबुन
सब कहते आशिक पर ख़ुद की नज़रों में
केवल अपना फ़र्ज़ निभाता है साबुन
इश्क़ अगर करना है सीखो साबुन से
मिट जाने तक साथ निभाता है साबुन
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार- 20/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 37 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
शुक्रिया दर्शन जी
हटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी !
शुक्रिया मनोज जी
हटाएंआपकी लिखी रचना शनिवार मंगलवार 21 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया यशोदा जी
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंभाई वाह ... क्या लाजवाब और इतर काफिया खोजा है गज़ल के लिए ...
जवाब देंहटाएंदिली दाद कबूल करें ...
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ...
बहुत बहुत धन्यवाद दिगंबर जी
हटाएंबेहतरीन !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
शुक्रिया
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