रविवार, 19 अक्तूबर 2014

ग़ज़ल : हर दिन गोरी को नहलाता है साबुन

बह्र : 22 22 22 22 22 2
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चुप रहकर सब सहता जाता है साबुन
इसीलिये गोरी को भाता है साबुन

आशिक, शौहर दोनों खूब तरसते हैं
हर दिन गोरी को नहलाता है साबुन

बनी रहे सुन्दरता इसीलिए खुद को
थोड़ा थोड़ा रोज मिटाता है साबुन

सब कहते आशिक पर ख़ुद की नज़रों में
केवल अपना फ़र्ज़ निभाता है साबुन

इश्क़ अगर करना है सीखो साबुन से
मिट जाने तक साथ निभाता है साबुन

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार- 20/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 37
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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  2. आपकी लिखी रचना शनिवार मंगलवार 21 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. भाई वाह ... क्या लाजवाब और इतर काफिया खोजा है गज़ल के लिए ...
    दिली दाद कबूल करें ...
    आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ...

    जवाब देंहटाएं

जो मन में आ रहा है कह डालिए।