बह्र : 2 1 2 2 -1 1 2 2- 1 1 2 2 – 2 2
ले गया
इश्क़ मुआँ आज बयाना मुझसे
अब ये
माँगेगा शब-ओ-रोज़ बकाया मुझसे
दफ़्न कर
दूँगा मैं दिल में सभी अरमाँ लेकिन
पहले
उट्ठे तो इन अश्क़ों का जनाज़ा मुझसे
दर-ओ-दीवार
पे चलने लगीं लाखों फ़िल्में
खुल गया
क्यूँ तेरी यादों का पिटारा मुझसे
जी किया
और वो उड़ के गया महबूब के पास
लाख बेहतर
है इक आज़ाद परिंदा मुझसे
आतिश-ए-इश्क़
में जल जल के नया हो तू भी
कह गया
रात यही बात पतंगा मुझसे
आदरणीय सज्जन जी, बहुत खूबसूरती से दिलों के हालात बयां किये हैं आपने । हर लफ्ज़ रूहानियत में डूबा हुआ सा । बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संदेश जी
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