शहर में पैदा हुआ और पला बढ़ा साँप
इस दुनिया का सबसे खतरनाक प्राणी है
इसे बचपन से ही आसानी से मिलने लगते हैं
झुग्गियों में ठुँसे हुए चूहे
फुटपाथ पर सोये हुए परिन्दे
छोटे छोटे घरों में बसे खरगोश
और खुद से कमजोर साँप
इन सबको जी भरकर खाते खाते
इसका पेट और इस इसकी ख़ुराक
दोनों दिन-ब-दिन बढ़ते चलते जाते हैं
खा खाकर ये लगातार लम्बा और मोटा होता चला जाता है
इसकी त्वचा दिन-ब-दिन चमकदार होती जाती है
और दिल-ओ-दिमाग लगातार ठंडे होते
जाते हैं
लेकिन शहर जैसी भीड़भाड़ वाली जगह
इसके बढ़ते आकार और बढ़ती भूख के कारण
इसके लिए धीरे धीरे असुरक्षित होने लगती है
शहर के तेज तर्रार नेवलों और बाजों से बचने के लिए
ये भागता है जंगलों, नदियों और पहाड़ों की तरफ
जहाँ इसका जहर
हरे भरे जंगलों को झुलसा देता है
नदियों का पानी जहरीला बना देता है
बड़ी बड़ी चट्टानों को भी गला देता है
इस तरह सीधे सादे जंगलों, नदियों और पहाड़ों का शोषण
करके
उन्हें दिन-ब-दिन नष्ट करता जाता है
गाँवों में भी साँप कम नहीं होते
पर उन्हें आसानी से कभी नहीं मिलता अपना भोजन
उनका आकार और उनकी ख़ुराक
दोनों घटते बढ़ते रहते हैं
इसलिए उनमें इतना जहर कभी नहीं बनता
कि वो जंगलों, नदियों और पहाड़ों को ज्यादा नुकसान पहुँचा सकें
शहर का साँप उन्हें या तो खा जाता है
या अपने शरीर का हिस्सा बना लेता है
अंत में शहरी साँप अपने कुल देवता का विशाल मंदिर बनवाता है
और हर साल उनपर सोने का छत्र चढ़ाता है
इस तरह शहरी साँप ये निश्चित करता है
कि चूहे, परिन्दे, खरगोश, छोटे साँप, जंगल, नदी और पहाड़
स्वर्ग में भी आसानी से मिल सकें
अब जबकि इस लोकतंत्र में
सर्पयज्ञ पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है
शहरी साँप अजेय है