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बुधवार, 24 सितंबर 2014

ग़ज़ल : बदनाम न हो जाय तो किस काम का शायर

बह्र : २२११ २२११ २२११ २२

जो कह न सके सच वो महज़ नाम का शायर
बदनाम न हो जाय तो किस काम का शायर

इंसान का मासूम का मज़लूम का कहिए
अल्लाह का शायर नहीं मैं राम का शायर

कुछ भी हो सजा सच की है मंजूर पर ऐ रब 
मुझको न बनाना कभी हुक्काम का शायर

मज़लूम के दुख दर्द से अश’आर कहूँगा
कहता है जमाना तो कहे वाम का शायर

बच्चे हैं मेरे शे’र तो मक़्ता है मेरी जान
कहते हैं मेरे यार मुझे शाम का शायर

8 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर !
    आपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हूँ
    आपसे अनुरोध है की मेरे ब्लॉग पर आये और फॉलो करके सुझाव दे

    जवाब देंहटाएं

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