बह्र : २२११ २२११ २२११ २२
जो कह न सके सच वो महज़ नाम का शायर
बदनाम न हो जाय तो किस काम का शायर
इंसान का मासूम का मज़लूम का कहिए
अल्लाह का शायर नहीं मैं राम का शायर
कुछ भी हो सजा सच की है मंजूर पर ऐ रब
मुझको न बनाना कभी हुक्काम का शायर
मज़लूम के दुख दर्द से अश’आर कहूँगा
कहता है जमाना तो कहे वाम का शायर
बच्चे हैं मेरे शे’र तो मक़्ता है मेरी जान
कहते हैं मेरे यार मुझे शाम का शायर
Bahut hi lajawab ... Alag andaaz ke sher ..
जवाब देंहटाएंMaza aa gaya ...
बहुत बहुत शुक्रिया दिगंबर जी
जवाब देंहटाएंवाह लाजव्वाब ग़ज़ल|
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया द्विजेन्द्र जी
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर !
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हूँ
आपसे अनुरोध है की मेरे ब्लॉग पर आये और फॉलो करके सुझाव दे
शुक्रिया
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