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सूट बूट
को नायक झुग्गियाँ समझती हैं
चीथड़ों को
कचरे सा कोठियाँ समझती हैं
आरियों के
दाँतों को पल में तोड़ देता है
पत्थरों
की कोमलता छेनियाँ समझती हैं
है लिबास
उजला पर दूध ने दही बनकर
घी कहाँ
छुपाया है मथनियाँ समझती हैं
सर्दियों
की ख़ातिर ये गुनगुना तमाशा भर
धूप
जानलेवा है गर्मियाँ समझती हैं
कोठियों
के भीतर तक ये पहुँच न पायें पर
है कहाँ
छुपी शक्कर चींटियाँ समझती हैं
bahut sundar gajal aa. dharmendra ji waah bahut khoob
जवाब देंहटाएंसर्दियों की ख़ातिर ये गुनगुना तमाशा भर
धूप जानलेवा है गर्मियाँ समझती हैं
कोठियों के भीतर तक ये पहुँच न पायें पर
है कहाँ छुपी शक्कर चींटियाँ समझती हैं
शुक्रिया शशि पुरवार जी
हटाएंअलग सी कविता
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंआरियों के दाँतों को पल में तोड़ देता है
जवाब देंहटाएंपत्थरों की कोमलता छेनियाँ समझती हैं
Waah ... Lajwab sher hai ... Khoobsoorat bahar ka ...
शुक्रिया दिगंबर जी
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