पृष्ठ

बुधवार, 9 जुलाई 2014

ग़ज़ल : जाल सहरा पे डाले गए

जाल सहरा पे डाले गए
यूँ समंदर खँगाले गए

रेत में धर पकड़ सीपियाँ
मीन सारी बचा ले गए

जो जमीं ले गए हैं वही
सूर्य, बादल, हवा ले गए

सर उन्हीं के बचे हैं यहाँ
वक्त पर जो झुका ले गए

मैं चला जब तो चलता गया
फूट कर खुद ही छाले गए

जानवर बन गए क्या हुआ
धर्म अपना बचा ले गए

खुद को मालिक समझते थे वो
अंत में जो निकाले गए

2 टिप्‍पणियां:

  1. सर उन्हीं के बचे हैं यहाँ
    वक्त पर जो झुका ले गए ...

    छोटी बहार की लाजवाब ग़ज़ल ... हर शेर कमाल का ... दिल में सीधे उतरता हुआ ...

    जवाब देंहटाएं

जो मन में आ रहा है कह डालिए।