धर्म-कर्म दुनिया में
प्राणवायु भरना
कब सीखा पीपल ने
भेदभाव करना?
फल हों रसदार या
सुगंधित हों फूल
आम साथ हों
या फिर जंगली बबूल
कब सीखा
चिन्ता के
पतझर में झरना
कीट, विहग, जीव-जन्तु
देशी-परदेशी
बुद्ध, विष्णु, भूत, प्रेत
देव या मवेशी
जाने ये
दुनिया में
सबके दुख हरना
जितना ऊँचा है ये
उतना विस्तार
दुनिया के बोधि वृक्ष
इसका परिवार
कालजयी
क्या जाने
मौसम से डरना
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
पीपल को केन्द्र में रख कर आपने एक सुगढ़ रचनाकर्म किया है, भाईजी.
जवाब देंहटाएंबधाई और शुभकामनाएँ
बहुत बहुत शुक्रिया सौरभ जी
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
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