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बुधवार, 28 मई 2014

नवगीत : कब सीखा पीपल ने भेदभाव करना

धर्म-कर्म दुनिया में
प्राणवायु भरना
कब सीखा पीपल ने
भेदभाव करना?

फल हों रसदार या
सुगंधित हों फूल
आम साथ हों
या फिर जंगली बबूल

कब सीखा
चिन्ता के
पतझर में झरना

कीट, विहग, जीव-जन्तु
देशी-परदेशी
बुद्ध, विष्णु, भूत, प्रेत
देव या मवेशी

जाने ये
दुनिया में
सबके दुख हरना

जितना ऊँचा है ये
उतना विस्तार
दुनिया के बोधि वृक्ष
इसका परिवार

कालजयी
क्या जाने
मौसम से डरना

शुक्रवार, 23 मई 2014

ग़ज़ल : पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो

कामयाबी चाहिए तो पाँव ढूँढो
पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो

शहर से जो माँग लोगे वो मिलेगा
शर्त इतनी है यहाँ मत गाँव ढूँढो

जीत लोगे युद्ध सब, इतना करो तुम
जो न हो नियमों में ऐसा दाँव ढूँढो

दौड़ते रहना, यहाँ जिन्दा रहोगे
भीड़ में मत बैठने को ठाँव ढूँढो

नभ मिलेगा, गर करो हल्का स्वयं को
और उड़ने के लिए पछियाँव ढूढो

शनिवार, 10 मई 2014

कविता : ग्रेविटॉन

यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण
तभी तो ये दोनों मोड़ देते हैं दिक्काल के धागों से बुनी चादर
कम कर देते हैं समय की गति

इन्हें कैद करके नहीं रख पातीं स्थान और समय की विमाएँ
ये रिसते रहते हैं एक ब्रह्मांड से दूसरे ब्रह्मांड में
ले जाते हैं आकर्षण उन स्थानों तक
जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती

अब तक किये गये सारे प्रयोग
असफल रहे इन दोनों का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण खोज पाने में
लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इनको महसूस करता है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण

शुक्रवार, 2 मई 2014

कविता : पूँजीवादी मशीनरी का पुर्ज़ा

मैं पूँजीवादी मशीनरी का चमचमाता हुआ पुर्ज़ा हूँ

मेरे देश की शिक्षा पद्धति ने
मेरे भीतर मौजूद लोहे को वर्षों पहले पहचान लिया था
इसलिए जल्द ही सुनहरे सपनों के चुम्बक से खींचकर
मुझे मेरी जमीन से अलग कर दिया गया

अध्यापकों ने कभी डरा-धमका कर तो कभी बहला-फुसला कर
मेरी अशुद्धियों को दूर किया
अशुद्धियाँ जैसे मिट्टी, हवा और पानी
जो मेरे शरीर और मेरी आत्मा का हिस्सा थे

तरह तरह की प्रतियोगिताओं की आग में गलाकर
मेरे भीतर से निकाल दिया गया भावनाओं का कार्बन
(वही कार्बन जो पत्थर और इंसान के बीच का एक मात्र फर्क़ है)

मुझमें मिलाया गया तरह तरह की सूचनाओं का क्रोमियम
ताकि हवा, पानी और मिट्टी
मेरी त्वचा तक से कोई अभिक्रिया न कर सकें

अंत में मूल वेतन और मँहगाई भत्ते से बने साँचे में ढालकर
मुझे बनाया गया सही आकार और सही नाप का

मैं अपनी निर्धारित आयु पूरी करने तक
लगातार, जी जान से इस मशीनरी की सेवा करता रहूँगा
बदले में मुझे इस मशीनरी के
और ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्सों में काम करने का अवसर मिलेगा

मेरे बाद ठीक मेरे जैसा एक और पुर्जा आकर मेरा स्थान ले लेगा

मैं पूँजीवादी मशीनरी का चमचमाता हुआ पुर्ज़ा हूँ
मेरे लिए इंसान में मौजूद कार्बन
ऊर्जा का स्रोत भर है।