बह्र
: १२२२
१२२२ १२२२ १२२२
महीनों
तक तुम्हारे प्यार में इसको
पकाया है
तभी
जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी
रंग आया है
अकेला
देख जब जब सर्द रातों ने सताया
है
तुम्हारा
प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया
है
किसी
को साथ रखने भर से वो अपना नहीं
होता
जो
मेरे दिल में रहता है हमेशा,
वो
पराया है
तेरी
नज़रों से मैं कुछ भी छुपा सकता
नहीं हमदम
बदन
से रूह तक तेरे लिए सबकुछ नुमाया
है
कई
दिन से उजाला रात भर सोने न
देता था
बहुत
मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया
है
आपकी लिखी रचना बुधवार 23 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
शुक्रिया दिग्विजय साहब
हटाएंमहीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है
जवाब देंहटाएंतभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है
Waah, Waah! Bahut khoob Sir :-)
बहुत बहुत शुक्रिया प्रकाश जी
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मधु जी
हटाएंमहीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है
जवाब देंहटाएंतभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है .... बहुत सुन्दर
.. गुलाबी रंग यूँ ही तो सब पर नहीं खिलता!
बहुत बहुत शुक्रिया कविता जी
हटाएंकई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था
जवाब देंहटाएंबहुत मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया है..
खूबसूरत शेर इस लाजवाब गजल का .. आफरीन ...
बहुत बहुत शुक्रिया नासवा जी
हटाएंशुक्रिया रविकर जी
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