बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कहीं भी आसमाँ पे मील का पत्थर
नहीं होता
भटक जाते परिंदे, गर
ख़ुदा, रहबर
नहीं होता
कहें कुछ भी किताबें, देश
का हाकिम ही मालिक है
दमन की शक्ति जिसके पास हो, नौकर
नहीं होता
बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को
कैसे
यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर
नहीं होता
मिलाकर झूठ में सच बोलना, देना
जब इंटरव्यू
सदा सच बोलने वाला कभी अफ़सर नहीं
होता
शज़र को फिर हरा कर ही नहीं पाता
कोई मौसम
जो पीलापन मिटाने के लिए पतझर नहीं
होता
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