बह्र : १२२२
१२२२ १२२२ १२२२
गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का
प्यार पाते हैं
परों को खोलकर अपने, जो
किस्मत आजमाते हैं
फ़लक पर झूमते हैं, नाचते
हैं, गीत गाते हैं
जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के ख़तरे कब डराते हैं
परिंदों की नज़र से एक पल गर देख लो दुनिया
न पूछोगे कभी,
उड़कर परिंदे क्या कमाते है
फ़लक पर सब बराबर हैं यहाँ नाज़ुक परिंदे भी
लड़ें गर सामने से तो विमानों को गिराते हैं
जमीं कहती,
नई पीढ़ी के पंक्षी भूल मत जाना
परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते हैं
लाजवाब .....अति उत्तम
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंकमाल के शेर हैं धर्मेन्द्र भाई ... जवाब नहीं आपका ... समा बाँध दिया आज तो ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया दिगंबर जी
हटाएंपरिंदों की नज़र से एक पल गर देख लो दुनिया
जवाब देंहटाएंन पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते है
लाजवाब ग़ज़ल आदरणीय
शुक्रिया वन्दना जी
हटाएं