बह्र : १२१२ ११२२ १२१२ २२
सभी से आँख चुराकर सम्हाल रक्खा है
नयन में प्यार का गौहर सम्हाल रक्खा है
कहेगा आज भी पागल व बुतपरस्त मुझे
वो जिसके हाथ का पत्थर सम्हाल रक्खा है
तेरे चमन से न जाए बहार इस खातिर
हृदय में आज भी पतझर सम्हाल रक्खा है
चमन मेरा न बसा, घर किसी का बस जाए
ये सोच जिस्म का बंजर सम्हाल रक्खा है
तेरे नयन के समंदर में हैं भँवर,
तूफाँ
किसी के प्यार ने लंगर सम्हाल रक्खा है
तुझे पसंद जो आया सनम वही मैंने
ग़ज़ल में आज भी तेवर सम्हाल रक्खा है
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