यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014
मेरी पहली किताब ‘ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर’ का विमोचन
आप सबको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मेरी पहली किताब ‘ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर’ का विमोचन दिनांक 22-02-2014 को सत्य प्रकाश मिश्र सभागार, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केन्द्र, इलाहाबाद में हुआ। समारोह की तस्वीरें निम्नवत हैं। जिन मित्रों को ये ग़ज़ल संग्रह चाहिए वे कृपया अपना डाक का पता मुझे [email protected] पर भेज दें।
भव्य कार्यक्रम देखकर प्रसन्नता हुई। लोकार्पण की हार्दिक शुभकामनाएँ। साहित्य के संवेदनशील प्रगतिपथ पर निरंतर बढ़ते रहें। सफल रहें।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद पूर्णिमा जी
हटाएंसर्प्रथम अपना पहला काव्य संग्रह ‘ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर’ प्रकाशित होने पर मेरी मेरी व् मेरी संस्था की ओर से आपका हार्दिक अभिनन्दन।
जवाब देंहटाएंविस्वाश है कि ये काव्य संग्रह ,काव्य जगत में आपको स्थापित करने में मील का पत्थर साबित होगा। गोपाल राय
बहुत बहुत धन्यवाद गोपाल राय साहब
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