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सोमवार, 27 जनवरी 2014

ग़ज़ल : ओढ़नी नोच डाली गई

बह्र : २१२ २१२ २१२
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जब उड़ी नोच डाली गई
ओढ़नी नोच डाली गई

एक भौंरे को हाँ कह दिया
पंखुड़ी नोच डाली गई

रीझ उठी नाचते मोर पे
मोरनी नोच डाली गई

खूब उड़ी आसमाँ में पतंग
जब कटी नोच डाली गई

देव मानव के चिर द्वंद्व में 
उर्वशी नोच डाली गई

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