बह्र
: २१२ २१२ २१२
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जब
उड़ी नोच डाली गई
ओढ़नी
नोच डाली गई
एक
भौंरे को हाँ कह दिया
पंखुड़ी
नोच डाली गई
रीझ
उठी नाचते मोर पे
मोरनी
नोच डाली गई
खूब
उड़ी आसमाँ में पतंग
जब
कटी नोच डाली गई
देव
मानव के चिर द्वंद्व में
उर्वशी नोच डाली गई
उर्वशी नोच डाली गई
अच्छी रचना.....बधाई....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जनाब
हटाएंबहुत ही लाजवाब धर्मेन्द्र जी ... माए अंदाज़ की गज़ल ... मज़ा आ गया ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दिगंबर जी
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