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शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

ग़ज़ल : आँखों में जो न उतरे वो दिल तलक न पहुँचे

बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२ 
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रस्ते में जिस्म आया मंजिल तलक न पहुँचे
आँखों में जो न उतरे वो दिल तलक न पहुँचे

मंजिल मिली जिन्हें भी मँझधार में, उन्हीं पर
कसता जहान ताना, साहिल तलक न पहुँचे

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी
यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना
पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे

घटता है आज गर तो कल बढ़ भी जायेगा, पर
जानम ये प्यार अपना बस निल तलक न पहुँचे

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