बह्र : २१२
२१२ २१२
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इश्क जबसे वो
करने लगे
रोज़ घंटों
सँवरने लगे
गाल पे लाल
बत्ती हुई
और लम्हे
ठहरने लगे
दिल की सड़कों
पे बारिश हुई
जख़्म फिर से
उभरने लगे
प्यार आखिर
हमें भी हुआ
और हम भी सुधरने
लगे
इश्क रब है ये
जाना तो हम
प्यार हर शै
से करने लगे
कर्म अच्छे
किये हैं तो क्यूँ
भूत से आप
डरने लगे
गाल पे लाल बत्ती हुई
जवाब देंहटाएंऔर लम्हे ठहरने लगे
बहुत खूब!
शुक्रिया साहिल साहब
हटाएंबढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय -
जवाब देंहटाएंबधाई -
शुक्रिया रविकर जी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (4-1-2014) "क्यों मौन मानवता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1482 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएंनया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
नई पोस्ट नया वर्ष !
लाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
लाजवाब शेर ... कमाल की गज़ल, नए अंदाज़ के शरों के साथ ...
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