बह्र : 212 212 212 212
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तेज धुन झूठ की वो बजाने
लगा
ताल पर उसकी सबको नचाने लगा
उसके चेहरे से नीयत न भाँपे कोई
इसलिये मूँछ दाढ़ी बढ़ाने लगा
सबसे कहकर मेरा धर्म खतरे में है
शेष धर्मों को भू से मिटाने लगा
वोट भूखे वतन का मिले इसलिए
गोल पत्थर को आलू बताने लगा
सुन चमत्कार को ही मिले याँ नमन
आँकड़ों
से वो जादू दिखाने लगा
Bahut hi lajawab sher ... Naye andaze ...
जवाब देंहटाएंतेज धुन झूठ की वो बजाने लगा
जवाब देंहटाएंताल पर उसकी सबको नचाने लगा
बहुत बढ़िया ग़ज़ल
बढ़िया-
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार १०/१२/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ स्वागत है ---यहाँ भी आइये --बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते
जवाब देंहटाएंRajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
तेज धुन झूठ की वो बजाने लगा
जवाब देंहटाएंताल पर उसकी सबको नचाने लगा
उसके चेहरे से नीयत न भाँपे कोई
इसलिये मूँछ दाढ़ी बढ़ाने लगा
सबसे कहकर मेरा धर्म खतरे में है
शेष धर्मों को भू से मिटाने लगा
वोट भूखे वतन का मिले इसलिए
गोल पत्थर को आलू बताने लगा
सुन चमत्कार को ही मिले याँ नमन
आँकड़ों से वो जादू दिखाने लगा
वाह दोस्त पूरी पोल खोल दी राजनीति के धंधा बाज़ों की।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को और सभी ब्लॉगर-मित्रों को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है