बह्र : 212 212 212 212
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तेज धुन झूठ की वो बजाने
लगा
ताल पर उसकी सबको नचाने लगा
उसके चेहरे से नीयत न भाँपे कोई
इसलिये मूँछ दाढ़ी बढ़ाने लगा
सबसे कहकर मेरा धर्म खतरे में है
शेष धर्मों को भू से मिटाने लगा
वोट भूखे वतन का मिले इसलिए
गोल पत्थर को आलू बताने लगा
सुन चमत्कार को ही मिले याँ नमन
आँकड़ों
से वो जादू दिखाने लगा