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शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

ग़ज़ल : क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं

बह्र : २१२२ १२१२ २२

याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं
क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं

बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे
और हम हैं घड़ी न होते हैं

प्रेम के वो न टूटते धागे
जिनके रेशे महीन होते हैं

वन में उगने से, वन में रहने से
पेड़ सब जंगली न होते हैं

उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ
रात सपने हसीन होते हैं

खट्टे मीठे घुले कई लम्हे

यूँ नयन शर्बती न होते हैं

6 टिप्‍पणियां:


  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1438” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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  3. याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं
    क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं
    प्रेम के वो न टूटते धागे
    जिनके रेशे महीन होते हैं

    खट्टे मीठे घुले कई लम्हे

    यूँ नयन शर्बती न होते हैं

    वाह सर बहुत बढ़िया ग़ज़ल

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  4. बहुत खूबसूरत मतला, और दिलचस्प शेर!

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जो मन में आ रहा है कह डालिए।