बह्र : २१२२ १२१२ २२
याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं
क्यूँ
वो अक्सर मशीन होते हैं
बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे
और हम हैं घड़ी न होते हैं
प्रेम के वो न
टूटते धागे
जिनके
रेशे महीन होते हैं
वन
में उगने से,
वन
में रहने से
पेड़
सब जंगली न होते हैं
उनको
जिस दिन मैं देख लेता हूँ
रात
सपने हसीन होते हैं
खट्टे मीठे घुले कई लम्हे
यूँ नयन शर्बती न होते हैं
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीय
बहुत सुंदर गजल.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1438” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
उत्कृष्ट रचना......वाह
जवाब देंहटाएंयाँ जो बंदे ज़हीन होते हैं
जवाब देंहटाएंक्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं
प्रेम के वो न टूटते धागे
जिनके रेशे महीन होते हैं
खट्टे मीठे घुले कई लम्हे
यूँ नयन शर्बती न होते हैं
वाह सर बहुत बढ़िया ग़ज़ल
बहुत खूबसूरत मतला, और दिलचस्प शेर!
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