बह्र : २२१२ २२१२ २२१२ २२१२
जब से हुई मेरे हृदय की संगिनी मेरी कलम
हर पंक्ति में लिखने लगी आम आदमी मेरी कलम
जब से उलझ बैठी हैं उसकी ओढ़नी, मेरी कलम
करने लगी है रोज दिल में गुदगुदी मेरी कलम
कुछ बात सच्चाई में है वरना बताओ क्यों भला
दिन रात होती जा रही है साहसी मेरी कलम
यूँ ही गले मिल के हैलो क्या कह गई पागल हवा
तब से न जाने क्यूँ हुई है बावरी मेरी कलम
उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं बुरा
क्या खत्म करने पर तुली है अफ़सरी मेरी कलम
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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कुछ बात सच्चाई में है वरना बताओ क्यों भला
जवाब देंहटाएंदिन रात होती जा रही है साहसी मेरी कलम
यूँ ही गले मिल के हैलो क्या कह गई पागल हवा
तब से न जाने क्यूँ हुई है बावरी मेरी कलम
उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं बुरा
क्या खत्म करने पर तुली है अफ़सरी मेरी कलम
बहुत बढ़िया कलम आदरणीय
यूँ ही गले मिल के हैलो क्या कह गई पागल हवा
जवाब देंहटाएंतब से न जाने क्यूँ हुई है बावरी मेरी कलम
उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं बुरा
क्या खत्म करने पर तुली है अफ़सरी मेरी कलम.
बहुत खूब ... नए रंग में रंगी लाजवाब गज़ल ... ये दोनों शेर तो खास पसंद आए ...