बह्र : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
मेरे संगदिल में रहा चाहती है
वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है
सदा सच कहूँ वायदा चाहती है
वो शौहर नहीं आइना चाहती है
उतारू है करने पे सारी ख़ताएँ
नज़र उम्र भर की सजा चाहती है
बुझाने क्यूँ लगती है लौ कौन जाने
चरागों को जब जब हवा चाहती है
न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती
मुई इश्क में भी नफ़ा चाहती है
उम्दा ग़ज़ल |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
सदा सच कहूँ वायदा चाहती है
जवाब देंहटाएंवो शौहर नहीं आइना चाहती है ...
बहुरत ही लाजवाब शेर ... अलाद अंदाज़ का शेर ... मज़ा आ गया पूरी गज़ल का ...
वाह...बहुत सुन्दर....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@जब भी जली है बहू जली है