शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

ग़ज़ल : और निधन गुनगुना हो गया

बहर : २१२ २१२ २१२
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जब श्वसन गुनगुना हो गया
तो मिलन गुनगुना हो गया

रूप की धूप में बैठकर
ये बदन गुनगुना हो गया

तेरी यादों की भट्ठी जली
मेरा मन गुनगुना हो गया

उसने डुबकी लगाई कहीं
आचमन गुनगुना हो गया

नर्म होंठों पे जुंबिश हुई
हरिभजन गुनगुना हो गया

थामकर हाथ हम चल पड़े
पर्यटन गुनगुना हो गया

उनके आने की आहट हुई
अंजुमन गुनगुना हो गया

उसके हाथों से पलकें मुँदीं
और निधन गुनगुना हो गया




1 टिप्पणी:

जो मन में आ रहा है कह डालिए।