साँसें जब करने लगीं, साँसों से
संवाद
जुबाँ समझ पाई तभी, गर्म हवा का
स्वाद
हँसी तुम्हारी, क्रीम सी, मलता हूँ दिन
रात
अब क्या कर लेंगे भला, धूप, ठंढ, बरसात
आशिक सारे नीर से, कुछ पल देते
साथ
पति साबुन जैसा, गले, किंतु न छोड़े
हाथ
सिहरें, तपें, पसीजकर, मिल जाएँ जब गात
त्वचा त्वचा से तब कहे, अपने दिल की
बात
छिटकी गोरे गाल से, जब गर्मी की
धूप
सारा अम्बर जल उठा, सूरज ढूँढे
कूप
प्रिंटर तेरे रूप का, मन का पृष्ठ
सुधार
छाप रहा है रात दिन, प्यार, प्यार, बस प्यार
तपता तन छूकर उड़ीं, वर्षा बूँद
अनेक
अजरज से सब देखते, भीगा सूरज एक
भीतर है कड़वा नशा, बाहर चमचम रूप
बोतल दारू की लगे, तेरा ही प्रारूप
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