बहर : २१२२ १२१२ २२
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बाजुओं की थकान जिंदा रख
जीतने तक उड़ान जिंदा रख
आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं
है जो खुद पे गुमान जिंदा रख
तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं
वो पुराना मकान जिंदा रख
बेज़बानों से कुछ तो सीख मियाँ
तू भी अपनी ज़बान जिंदा रख
नोट चलता हो प्यार का भी जहाँ
एक ऐसी दुकान जिंदा रख
जान तुझमें ये डाल देंगे कभी
नाक, आँखें व कान जिंदा रख
बहुत खूब भाई शानदार ग़ज़ल है
जवाब देंहटाएंबढ़िया-शुभकामनायें आदरणीय-
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंइस ग़ज़ल की प्रस्तुति और इसके भावपक्ष पर जितना कहूँ कम होगा भाईजी.
जवाब देंहटाएंएक-एक शेर महती गुरुत्व से भरा. इतना सान्द्र कि अम्लराज़ कुछ और पानी उड़ाना चाहे.
इन दोइ अश’आर पर तो क़ुर्बान --
तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं
वो पुराना मकान जिंदा रख
बेज़बानों से कुछ तो सीख मियाँ
तू भी अपनी ज़बान जिंदा रख
वाह वाह वाह ... .
जय हो..