बुधवार, 24 अप्रैल 2013

ग़ज़ल : निकलने दे अगन ज्वालामुखी से



बहर : १२२२ १२२२ १२२
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ठहर, कल झील निकलेगी इसी से
निकलने दे अगन ज्वालामुखी से

सफाई कर मदद ले के किसी से
कहाँ भागेगा खुद की गंदगी से

मिली है आज सारा दिन मुहब्बत
सुबह तेरे लबों की बोहनी से

बस इतनी बात से मैं होम लिख दूँ
लगाई आग तुमने शुद्ध घी से

बताये कोयले को भी जो हीरा
बचाये रब ही ऐसे पारखी से

समय भी भर नहीं पाता है इनको
सँभलकर घाव देना लेखनी से

हकीकत का मुरब्बा बन चुका है
समझ बातों में लिपटी चाशनी से

उफनते दूध की तारीफ ‘सज्जन’
कभी मत कीजिए बासी कढ़ी से

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ... बहुत ही लाजवाब शेर हैं सभी आज की गज़ल में ... ओर सच के भी कितने करीब हैं ...

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  2. नमस्कार महोदय,

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    आपका स्नेहकांक्षी
    राजेंद्र कुमार

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