बहर : १२२२ १२२२ १२२
-------------------------------
ठहर, कल झील
निकलेगी इसी से
निकलने दे अगन
ज्वालामुखी से
सफाई कर मदद ले
के किसी से
कहाँ भागेगा खुद
की गंदगी से
मिली है आज सारा
दिन मुहब्बत
सुबह तेरे लबों
की बोहनी से
बस इतनी बात से
मैं होम लिख दूँ
लगाई आग तुमने
शुद्ध घी से
बताये कोयले को
भी जो हीरा
बचाये रब ही ऐसे
पारखी से
समय भी भर नहीं
पाता है इनको
सँभलकर घाव देना
लेखनी से
हकीकत का
मुरब्बा बन चुका है
समझ बातों में
लिपटी चाशनी से
उफनते दूध की
तारीफ ‘सज्जन’
कभी मत कीजिए
बासी कढ़ी से
वाह ... बहुत ही लाजवाब शेर हैं सभी आज की गज़ल में ... ओर सच के भी कितने करीब हैं ...
जवाब देंहटाएंsal shabdo se gahari baate karna .....utkrisht rachana
जवाब देंहटाएंनमस्कार महोदय,
जवाब देंहटाएंमैंने एक हिंदी साहित्य संकलन नामक ब्लॉग बनाया है,जिन पर साहित्यकारों की रचनाओं के संकलित किया जा रहा है,यदि आप की भी कुछ ग़ज़लें वहाँ होती तो ब्लॉग की सुंदरता बढ़ जाती.एक बार अवलोकन कर कुछ रचनाये भेजे जो आपके परिचय के साथ प्रकाशित की जायेगी .आपके पेज पर बहुत सारे उच्च कोटि की बेहतरीन ग़ज़लें हैं,वहाँ से भी संकलित की जा सकती है...एक बार अवलोकन करे.आप लोगो जैसे साहित्यकारों का योगदान चाहिए.
http://kavysanklan.blogspot.ae/
आपका स्नेहकांक्षी
राजेंद्र कुमार