मेरे कानों की
गुफाओं में गूँज रही है
परमानंद के समय की
तुम्हारी सिसकियाँ
मेरी आँखों के
पर्दों पर चल रही है
तुम्हारे दिगम्बर
बदन की उत्तेजक फ़िल्म
मेरी नाक के कमरों
में फैली हुई है
तुम्हारे जिस्म की
मादक गंध
मेरे मुँह के स्पीकर
से निकल रहे हैं
तुम्हारे लिए
प्रतिबंधित शब्द
मेरी त्वचा की चद्दर
से मिटते ही नहीं
तुम्हारे दाँतों के
लाल निशान
तुम्हारा प्रेम
परमाणु बम की तरह गिरता है मुझपर
जिसका विद्युत
चुम्बकीय विकिरण
काट देता मेरी
इंद्रियों का संबंध मेरे मस्तिष्क से
धीमा कर देता है
मेरे शरीर द्वारा अपनी स्वाभाविक अवस्था में लौटने का वेग
मेरे शरीर द्वारा अपनी स्वाभाविक अवस्था में लौटने का वेग
हर विस्फोट के बाद
थोड़ा और बदल जाती है
मेरे डीएनए की संरचना
हर विस्फोट के बाद
मैं थोड़ा और नया हो
जाता हूँ
प्रेम अगर परमाणु बम
नहीं तो कुछ भी नहीं
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 26/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है ,होली की हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
जवाब देंहटाएंबहुत ही भाव पूर्ण लालित्य लिए प्रीतिकर सृजन ...होली की हार्दिक शुभकामनाएं ....
जवाब देंहटाएंबड़ा अनोखा सृजन
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