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गुरुवार, 28 मार्च 2013

कविता : क्रिया-प्रतिक्रिया


हर क्रिया के बराबर एवं विपरीत
एक प्रतिक्रिया होती है

कभी प्रतिक्रिया प्रत्यक्ष दिखती है
कभी भीतर ही भीतर इकट्ठी होती रहती है
आन्तरिक प्रतिरोध ऊर्जा के रूप में

आन्तरिक ऊर्जा
जब किसी की सहन शक्ति से ज्यादा हो जाती है
तो वह एक विस्फोट के साथ टूट जाता है

सावधानी से एक बार फिर जाँच लीजिए
आप की किन किन क्रियाओं की
प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया नहीं हुई

सोमवार, 25 मार्च 2013

कविता : प्रेम अगर परमाणु बम नहीं तो कुछ भी नहीं


मेरे कानों की गुफाओं में गूँज रही है
परमानंद के समय की तुम्हारी सिसकियाँ

मेरी आँखों के पर्दों पर चल रही है
तुम्हारे दिगम्बर बदन की उत्तेजक फ़िल्म

मेरी नाक के कमरों में फैली हुई है
तुम्हारे जिस्म की मादक गंध

मेरे मुँह के स्पीकर से निकल रहे हैं
तुम्हारे लिए प्रतिबंधित शब्द

मेरी त्वचा की चद्दर से मिटते ही नहीं
तुम्हारे दाँतों के लाल निशान

तुम्हारा प्रेम परमाणु बम की तरह गिरता है मुझपर
जिसका विद्युत चुम्बकीय विकिरण
काट देता मेरी इंद्रियों का संबंध मेरे मस्तिष्क से
धीमा कर देता है
मेरे शरीर द्वारा अपनी स्वाभाविक अवस्था में लौटने का वेग

हर विस्फोट के बाद
थोड़ा और बदल जाती है मेरे डीएनए की संरचना
हर विस्फोट के बाद
मैं थोड़ा और नया हो जाता हूँ

प्रेम अगर परमाणु बम नहीं तो कुछ भी नहीं  

रविवार, 10 मार्च 2013

ग़ज़ल : तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा


बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२
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करके उपवास तू उसको न सता मान भी जा
तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा

सिर्फ़ करने से दुआ रोग न मिटता कोई
है तो कड़वी ही मगर पी ले दवा मान भी जा

गर है बेताब रगों से ये निकलने के लिए
कर लहू दान कोई जान बचा मान भी जा

बारहा सोच तुझे रब ने क्यूँ बख़्शा है दिमाग 
सिर्फ़ इबादत को तो काफ़ी था गला मान भी जा

अंधविश्वास अशिक्षा और घर घुसरापन
है गरीबी इन्हीं पापों की सजा मान भी जा