सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं
छोड़ मुझे वो जब जब मैके जाने लगते हैं
उनके गुस्सा होते ही घर के सारे बर्तन
मुझको ही दोषी कहकर चिल्लाने लगते हैं
उनको देख रसोई के सब डिब्बे जादू से
अंदर की सारी बातें बतलाने लगते हैं
ये किस भाषा में चौका, बेलन, चूल्हा, कूकर
उनको छूते ही उनसे बतियाने लगते हैं
जिनकी खातिर खुद को मिटा चुकीं हैं,
वो ‘सज्जन’
प्रेम रहित जीवन कहकर पछताने लगते हैं
बहुत मजेदार उम्दा गजल ,,
जवाब देंहटाएंrecent post: बसंती रंग छा गया
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगल वार 19/2/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है-आदरणीय ।।
जवाब देंहटाएंBlogVarta.com पहला हिंदी ब्लोग्गेर्स का मंच है जो ब्लॉग एग्रेगेटर के साथ साथ हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट भी है! आज ही सदस्य बनें और अपना ब्लॉग जोड़ें!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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