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सोमवार, 14 जनवरी 2013

ग़ज़ल : नाव ही नाखुदा हो गई

पेश है नन्हीं सी बहर की एक नन्हीं सी ग़ज़ल
बहर : २१२ २१२ २१२
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राहबरजब हवा हो गई
नाव ही नाखुदा हो गई

प्रेम का रोग मुझको लगा
और दारूदवा हो गई

जा गिरी गेसुओं में तेरे
बूँद फिर से घटा हो गई

चाय क्या मिल गई रात में
नींद हमसे खफ़ा हो गई

लड़ते लड़ते ये बुज़दिल नज़र
एक दिन सूरमा हो गई

जब सड़क पर बनी अल्पना
तो महज टोटका हो गई

माँ ने जादू का टीका जड़ा
बद्दुआ भी दुआ हो गई
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मंगलवार, 1 जनवरी 2013

ग़ज़ल : नया बरस कभी न इस बरस समान हो


नया रदीफ़ काफ़िया नया बयान हो
नए बरस नई जमीन से उड़ान हो

नए हों वेद, श्लोक नव, नया कुरान हो
नए बरस नवीन आरती अजान हो

पहाड़ सा उठें अगर कभी उठान हो
नए बरस न दूध सा कोई उफान हो

अतीत का न सिर्फ़ अब यहाँ बखान हो
नया समय खड़ा है मोड़ पर गुमान हो

न लाश ले के लौटता कोई विमान हो
नए बरस न जागता कोई मसान हो

नई अदालतें बनें नया विधान हो
नया बरस कभी न इस बरस समान हो

चले जो सत्य पर उसे न अब थकान हो
नए बरस न दब रही कोई जुबान हो

न पंछियों की ताक में यहाँ नए बरस
बहेलियों का जाल या कोई मचान हो